रिटायरमेंट के बाद न हो अनुशासनात्मक कार्रवाई, और पेंशन में देरी भी नहीं—सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के अहम फैसला

सरकारी कर्मचारियों की सेवा के बाद पेंशन और सम्मानजनक विदाई उनका अधिकार है, कोई उपकार नहीं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट ने दो ऐसे ऐतिहासिक फैसले दिए हैं जो रिटायर हो चुके कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूती से स्थापित करते हैं। इन फैसलों से यह साफ हो गया है कि न तो सेवानिवृत्त कर्मचारी पर रिटायरमेंट के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है और न ही पेंशन भुगतान में किसी प्रकार की देरी सहन की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: रिटायरमेंट के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई अमान्य

मामला: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम नवीन कुमार सिन्हा (CA 1279/2024)

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें एसबीआई द्वारा एक रिटायर्ड कर्मचारी के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को रद्द कर दिया गया था। बैंक ने कर्मचारी पर सेवानिवृत्ति के बाद आरोप लगाए थे कि उसने अपने रिश्तेदारों को नियमों के विरुद्ध लोन स्वीकृत किया था।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयां की बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी भी अनुशासनात्मक कार्यवाही की वैध शुरुआत चार्जशीट जारी होने के बाद ही मानी जाएगी, न कि केवल शो-कॉज नोटिस भेजने से। चूंकि यह चार्जशीट रिटायरमेंट के बाद जारी की गई थी, इसलिए पूरी कार्यवाही गैर-कानूनी घोषित की गई।

मुख्य बात:

“अगर कर्मचारी की सेवा समाप्त हो चुकी है और उसके बाद कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू होती है, तो वह नियम विरुद्ध मानी जाएगी।”

कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला: पेंशन कोई दया नहीं, कानूनी अधिकार है

मामला: हुगली-चुचुड़ा नगरपालिका बनाम 148 सेवानिवृत्त ग्रुप-डी कर्मचारी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक कड़े शब्दों वाले आदेश में कहा कि पेंशन देना राज्य की जिम्मेदारी है, न कि कोई खैरात। न्यायमूर्ति गौरांग कांत ने नगरपालिका को फटकार लगाते हुए कहा कि तकनीकी कारणों से पेंशन में देरी अस्वीकार्य है।

1991 से सेवा कर रहे 148 कर्मचारी, जिन्हें ‘कंजरवेंसी वर्कर’ के रूप में नियुक्त किया गया था, उनकी पेंशन 2023 में सेवानिवृत्त होने के बाद तकनीकी कारणों से रोकी गई। कोर्ट ने नगरपालिका को एक सप्ताह में जरूरी दस्तावेज जमा करने और अधिकतम चार सप्ताह के भीतर पेंशन भुगतान सुनिश्चित करने का आदेश दिया।

मुख्य बात:

“पेंशन में एक दिन की भी देरी संविधान के न्याय, समानता और प्रशासनिक जवाबदेही के सिद्धांतों के खिलाफ है।”

इन फैसलों का महत्व

  1. कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा: अब रिटायरमेंट के बाद जबरन अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं हो सकेगी।
  2. पेंशन भुगतान की अनिवार्यता: तकनीकी खामी, सिस्टम फेलियर या प्रशासनिक लापरवाही के नाम पर पेंशन में देरी को कोर्ट ने पूरी तरह खारिज कर दिया है।
  3. निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों पर लागू: ये फैसले सिर्फ सरकारी दफ्तरों के लिए नहीं, बल्कि बैंकों और अन्य संस्थाओं पर भी लागू होंगे।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट के ये फैसले हर रिटायर्ड कर्मचारी के लिए आशा की किरण हैं। अब उन्हें न तो अनुचित अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर रहेगा और न ही पेंशन पाने के लिए सिस्टम से लड़ाई लड़नी पड़ेगी।

इन निर्णयों से यह साफ हो गया है कि सेवा पूरी करने के बाद हर कर्मचारी को उसका हक समय पर और सम्मानपूर्वक मिलना ही चाहिए।

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