Senior Citizen को लेकर भारत पेंशनर्स समाज (Bharat Pensioners Samaj) ने हाल ही में एक बेहद चिंताजनक घटना पर रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखा है। यह घटना किसी आम यात्री की नहीं, बल्कि एक 86 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक श्री ए.वी. मुकुंथराजन की है, जो देश की सेवा कर चुके हैं और अब अपने जीवन के इस पड़ाव पर सम्मान और सुविधा के अधिकारी हैं।
क्या हुआ था बेंगलुरु स्टेशन पर?
16 मई 2025 को जब श्री मुकुंथराजन शताब्दी एक्सप्रेस (गाड़ी संख्या 12027) से चेन्नई से बेंगलुरु पहुंचे, तब उन्होंने स्टेशन पर मौजूद बग्गी सेवा का सहारा लेना चाहा। उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह सुविधा उनके लिए ज़रूरी थी। लेकिन बेंगलुरु स्टेशन पर मौजूद दो बग्गी चालकों ने यह कहकर उन्हें मना कर दिया कि वे उनका छोटा सा सूटकेस साथ नहीं ले जा सकते। उन्होंने विनती की, यहाँ तक कि पैसे देने की पेशकश की, लेकिन मदद नहीं मिली।
रात के 10:30 बजे के आसपास, वे अकेले, थके हुए और असहाय हालत में खड़े थे। किसी भी संस्था ने उनकी मदद नहीं की। सौभाग्य से एक सज्जन यात्री ने उनकी मदद की, वरना वे स्टेशन पर रात भर फंसे रह सकते थे।
क्या बग्गी सेवाएं सिर्फ दिखावे के लिए हैं?
इस दर्दनाक अनुभव के बाद एक सवाल उठना लाजमी है – क्या रेलवे स्टेशन पर बुज़ुर्गों और दिव्यांगों के लिए उपलब्ध बग्गी सेवाएं केवल नाम मात्र की हैं? या फिर इन पर कुछ नियम ऐसे थोप दिए गए हैं जो इन सेवाओं को अप्रासंगिक बना देते हैं?
भारत पेंशनर्स समाज की पाँच प्रमुख माँगें
इस मामले को केवल एक अपवाद मानकर नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसलिए BPS ने कुछ ठोस सुझाव दिए हैं, जिनमें ये पाँच बिंदु शामिल हैं:
- बग्गी सेवा के नियम और शर्तें स्पष्ट हों
– अगर बग्गी में सामान नहीं ले जाया जा सकता, तो यह बात हर स्टेशन और वेबसाइट पर स्पष्ट रूप से लिखी जाए। - नियमों में बदलाव किया जाए
– वरिष्ठ नागरिकों या दिव्यांग यात्रियों को कम से कम एक सूटकेस या हैंडबैग साथ ले जाने की अनुमति होनी चाहिए। - बग्गी चालकों को संवेदनशीलता की ट्रेनिंग दी जाए
– उन्हें यह समझाया जाए कि बुज़ुर्गों के लिए सहानुभूति, प्राथमिकता और मदद कितनी ज़रूरी है। - घटना की निष्पक्ष जांच हो
– इस मामले की जाँच कर यह तय किया जाए कि क्या बग्गी चालकों ने नियमों के खिलाफ व्यवहार किया और यदि हाँ, तो उन पर कार्रवाई हो। - सभी स्टेशनों पर एक जैसी सेवा नीति लागू हो
– विशेष रूप से शताब्दी, वंदे भारत जैसी ट्रेनों में यात्रा कर रहे वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक समान और मानवीय सेवा प्रणाली सुनिश्चित की जाए।
समस्या से समाधान की ओर
इस घटना ने साफ कर दिया है कि रेलवे में बुज़ुर्गों के लिए जो सेवाएं उपलब्ध हैं, वे केवल कागज़ों में हैं। ज़मीनी हकीकत इससे बहुत अलग है। भारत पेंशनर्स समाज ने सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि लाखों बुज़ुर्गों की बात उठाई है जो रोज़ाना ऐसी अनदेखी का शिकार होते हैं।
रेल मंत्रालय से उम्मीद है कि वह इस मामले को गंभीरता से लेगा और वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सम्मानजनक और सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाएगा.

मेरा नाम एन. डी. यादव है। मुझे लेखन के क्षेत्र में 6 वर्षों का अनुभव है। मैंने अपने लेखनी के दौरान सरकारी नीतियों, कर्मचारियों और पेन्शनभोगियो के लाभ, पेंशन योजनाओं और जनकल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी जानकारियों को आप तक सरल और स्पष्ट भाषा में पहुंचाने का कार्य किया है।
मेरे लेखों का उद्देश्य लोगों को सही, सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करना है। मैं अपने लेख में हमेशा यह प्रयास करता हूं कि भाषा सरल हो, जानकारी उपयोगी हो और पाठक को किसी भी विषय को समझने में कठिनाई न हो।
उपरोक्त घटना पूर्णतया सही है सभी रेलवे स्टेशनों पर ऐसा होता है की जो प्लेटफार्म पर इलेक्ट्रिक गाड़ी चलती है उसका ₹50 प्रति व्यक्ति वसूल किया जाता है और साथ में यदि बैग या समान हो तो उसको ले जाने की अनुमति नहीं है इसके लिए उनको अलग से कुली करना पड़ता है. यह भी बोला जाता है कि उसको पहले से बुक करना पड़ेगा और कोई भी गाड़ी पर किसी प्रकार का कोई निर्देश अथवा उनके मोबाइल नंबर नहीं लिखे होते हैं.
The same problem I along with my sick wife who was not able to walk also faced same problem in the Bangalore station at late night. Govt. has provided systems to cater the needs of passengers. Latter, due to lack of supervision people are deprived of these facilities.