EPS-95 के पेंशनर्स सालों से सरकार और EPFO के दरवाज़े खटखटा रहे हैं—उम्मीद के साथ, भरोसे के साथ। लेकिन जो मिला, वह सिर्फ आश्वासन था—बार-बार के वादे और कोई ठोस परिणाम नहीं।
देश की सबसे कमजोर और उपेक्षित पेंशनभोगी आबादी को मात्र ₹1000-₹2000 की पेंशन में गुज़ारा करना पड़ता है, जबकि प्रधानमंत्री कोरोना काल में लाखों करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर चुके हैं। सवाल उठता है कि जब देश की अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए हजारों करोड़ निकल सकते हैं, तो बुजुर्ग पेंशनरों के लिए ₹7500 की न्यूनतम पेंशन क्यों नहीं?
EPFO की अदालती अवहेलना
कई न्यायालयों ने उच्च पेंशन को लेकर EPFO को स्पष्ट निर्देश दिए हैं, लेकिन अधिकारियों की टालमटोल और निष्क्रियता से न्याय की उम्मीदें बार-बार टूटती रही हैं।
ऐसे में मांग उठ रही है कि:
- EPFO और उसके वरिष्ठ अधिकारियों पर न्यायालय की अवमानना के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।
- साथ ही, श्रम मंत्री, वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री जैसे जिम्मेदार पदाधिकारियों की नैतिक जिम्मेदारी भी तय की जानी चाहिए।
पेंशनर्स को ताकत दिखाने का समय
EPS-95 पेंशनर्स का नेतृत्व बार-बार सरकार से मिला, वादे हुए, मीडिया कवरेज हुआ, लेकिन परिणाम शून्य।
अब वक्त आ गया है कि पेंशनर्स को सड़कों पर उतरकर लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए:
- हर शहर और गांव में जनजागरूकता अभियान चलाया जाए
- काले झंडों और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए सरकार से जवाब मांगा जाए
- चुनावों में वादाखिलाफ नेताओं का पर्दाफाश किया जाए
- हर BJP कार्यक्रम में सच को उजागर किया जाए, लेकिन भाषा मर्यादित रहे
वादों की राजनीति: फिर से ठगे गए पेंशनर्स
2014 में जब चुनाव का माहौल था, तब कुछ नेता EPS-95 पेंशनर्स को ₹3000 और DA जोड़ने का वादा करके MP बन गए।
आज वे या तो गायब हैं या मौन हैं।
महाराष्ट्र में हालिया विधानसभा चुनावों के दौरान भी वादों की बौछार हुई। नेताओं ने बुलाकर मीटिंग की, सहानुभूति दिखाई, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सबकुछ भुला दिया गया।
हेमा जी जैसे नेताओं से अपेक्षा
कई पेंशनर्स की उम्मीदें हेमा मालिनी जी जैसे सांसदों से थीं। उन्होंने कोशिश भी की, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिले।
ऐसे में लोगों का सवाल जायज है कि—अगर पार्टी पेंशनर्स की आवाज़ नहीं सुनती, तो हेमा जी को पार्टी से नाता तोड़कर इस्तीफा दे देना चाहिए, ताकि देश देखे कि नेता जनहित के लिए खड़े हो सकते हैं।
निष्कर्ष: अब खामोशी नहीं, कार्रवाई चाहिए
अब वक्त है कि EPS-95 पेंशनर्स और उनके परिवार एकजुट होकर शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त आंदोलन करें।
सरकार को बताना होगा कि—आप हमें नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन हम लोकतंत्र में अपनी ताकत दिखा सकते है।