जब कोई कर्मचारी सेवा में होता है, तो उसे हर महीने उसका पूरा वेतन यानी 100 प्रतिशत मिलता है। उस समय उसकी शारीरिक स्थिति भी सामान्यतः ठीक रहती है और स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता। मेडिकल खर्च यदि होता भी है, तो वह स्थायी नहीं होता। कह सकते हैं कि कमाई पूरी होती है और जिम्मेदारियाँ भी नियंत्रण में होती हैं।
लेकिन जैसे ही वह कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है, उसकी आमदनी आधी या उससे भी कम हो जाती है, क्योंकि उसे अब पेंशन मिलती है, न कि वेतन। वहीं दूसरी ओर, उम्र बढ़ने के साथ उसके स्वास्थ्य में गिरावट आनी शुरू हो जाती है। यह गिरावट स्थायी रूप ले लेती है और फिर शुरू होता है अस्पतालों के चक्कर, मेडिकल टेस्ट, नियमित दवाइयों और इलाज पर भारी खर्च।
कम आमदनी, ज्यादा खर्च – पेंशनरों की सच्चाई
अगर तुलना करें तो नौकरी के दौरान आमदनी और खर्च का अनुपात होता है 1:1, यानी जितनी आमदनी उतनी ही जिम्मेदारी। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद यह अनुपात बदलकर 1:4 या 1:5 हो जाता है। मतलब जब खर्च सबसे ज्यादा होता है, तभी आमदनी को आधा या उससे भी कम कर दिया जाता है।
इसके साथ ही एक और अनदेखा पहलू है – मुद्रा का अवमूल्यन। जैसे-जैसे समय बीतता है, रुपया अपनी कीमत खोता है, यानी 10 साल पहले की ₹100 की वैल्यू और आज की ₹100 की वैल्यू में बहुत फर्क है। लेकिन पेंशन उसी आधार पर बनी रहती है।
अतिरिक्त पेंशन की उम्र सीमा – क्या यह सही है?
वर्तमान में भारत सरकार 80 वर्ष की आयु के बाद पेंशन में 20 प्रतिशत की वृद्धि देती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि कितने लोग 80 वर्ष की आयु तक जीवित रहते हैं? और अगर कोई रह भी गया, तो उस अवस्था में वह अतिरिक्त राशि का कितना उपयोग कर पाता है? तब वह व्यक्ति शारीरिक रूप से परावलंबी बन चुका होता है।
यह तो वही बात हो गई –
“का वर्षा जब कृषि सुखाने”
(जब खेत सूख जाएं, तब बारिश का क्या लाभ?)
सही समय पर लाभ मिले – यह ज़रूरी है
अगर सरकार वाकई में वरिष्ठ नागरिकों और पेंशनरों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है, तो उसे यह अतिरिक्त पेंशन उनके ऐसे समय में देनी चाहिए जब वे उसका उपयोग स्वयं कर सकें। इसलिए यह मांग की जा रही है कि:
- 65 वर्ष की आयु पर 10% अतिरिक्त पेंशन मिले
- 75 वर्ष की आयु पर 20%
- 85 वर्ष पर 30%
- 95 वर्ष पर 40%
- और 100 वर्ष या उससे अधिक आयु होने पर 50% या उससे अधिक पेंशन वृद्धि दी जाए
निष्कर्ष
पेंशन का उद्देश्य है – सेवानिवृत्ति के बाद व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करना। लेकिन जब जरूरत अधिक हो और सहायता कम मिले, तब यह उद्देश्य अधूरा रह जाता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह वृद्धावस्था की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त पेंशन की उम्र सीमा को कम करे, ताकि इसका लाभ वास्तविक ज़रूरतमंदों को सही समय पर मिल सके।

मेरा नाम एन. डी. यादव है। मुझे लेखन के क्षेत्र में 6 वर्षों का अनुभव है। मैंने अपने लेखनी के दौरान सरकारी नीतियों, कर्मचारियों और पेन्शनभोगियो के लाभ, पेंशन योजनाओं और जनकल्याणकारी योजनाओं से जुड़ी जानकारियों को आप तक सरल और स्पष्ट भाषा में पहुंचाने का कार्य किया है।
मेरे लेखों का उद्देश्य लोगों को सही, सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करना है। मैं अपने लेख में हमेशा यह प्रयास करता हूं कि भाषा सरल हो, जानकारी उपयोगी हो और पाठक को किसी भी विषय को समझने में कठिनाई न हो।