भारत सरकार ने पेंशन नियमों में एक महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए CCS (पेंशन) नियम, 2021 के नियम 37(29)(ग) में संशोधन किया है। यह संशोधन उन कर्मचारियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होकर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में समाहित हो जाते हैं.
नया नियम क्या कहता है?
अब यदि कोई पूर्व सरकारी कर्मचारी, जो किसी PSU में शामिल हो चुका है, वहां सेवा के दौरान गंभीर अनुशासनहीनता या कदाचार करता है और उसे नौकरी से हटाया या बर्खास्त कर दिया जाता है, तो उसकी पूर्व सरकारी सेवा के दौरान अर्जित पेंशन लाभ भी ज़ब्त किए जा सकते हैं।
यह फैसला सरकार ने कई मंत्रालयों और विभागों – जैसे कि वित्त मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, विधि कार्य विभाग, विधायी विभाग और CAG (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) के परामर्श के बाद लिया है।
किन नियमों के तहत कार्रवाई होगी?
संशोधित नियम के तहत, अब PSU में काम कर रहे पूर्व सरकारी कर्मचारियों पर भी वही अनुशासनात्मक नियम लागू होंगे, जो वर्तमान सरकारी कर्मचारियों पर होते हैं:
- नियम 7 और 8 – सरकारी सेवक की अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए
- नियम 41 – पेंशन लाभों की समाप्ति या स्थगन
- नियम 44(5)(क) और (ख) – आपराधिक मामलों में पेंशन पर असर
यह नियम यह सुनिश्चित करता है कि PSU में सेवा देने वाले पूर्व सरकारी कर्मचारी भी नियमों के प्रति पूरी तरह से जवाबदेह हों।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से प्रेरित है यह संशोधन
इस संशोधन की पृष्ठभूमि में भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक अहम फैसला है। मामला था सूरज प्रताप सिंह बनाम CMD BSNL और अन्य (SLP 4817/2020), जिसमें अदालत ने 9 जनवरी 2023 को यह स्पष्ट किया कि अगर किसी कर्मचारी को PSU से कदाचार के कारण निकाला जाता है, तो उसकी पहले की सरकारी सेवा के पेंशन लाभ भी जब्त किए जा सकते हैं।
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इसका असर किन लोगों पर होगा?
यह संशोधन मुख्य रूप से उन लोगों पर लागू होगा:
- जो सरकारी सेवा से PSU में ट्रांसफर या डेप्युटेशन पर गए हों
- जिन्हें PSU में कार्यकाल के दौरान अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा हो
- जिन्हें हटाने, पदच्युत करने या छंटनी का सामना करना पड़ा हो
अब उनके पेंशन लाभों पर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है।
निष्कर्ष: जवाबदेही अब और सख्त
इस नए संशोधन का उद्देश्य है कि पूर्व सरकारी कर्मचारी, चाहे अब वे किसी PSU में हों, अपने आचरण के लिए पूरी तरह उत्तरदायी बने रहें। इससे पेंशन व्यवस्था की पारदर्शिता और नैतिकता को मजबूती मिलेगी।
सरकार यह स्पष्ट करना चाहती है कि पेंशन कोई बाय डिफॉल्ट हक नहीं, बल्कि यह ईमानदारी और नियमबद्ध सेवा का इनाम है।
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