EPS-95 पेंशनर्स के साथ मज़ाक कब तक चलेगा? 7500 पेंशन + DA

आज यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि मौजूदा सरकार EPS-95 पेंशनर्स के साथ न्याय नहीं कर रही है। जिन उम्मीदों के साथ हमने अपने जीवन के अहम साल नौकरी में गुजारे थे, अब वही उम्मीदें सरकार की अनदेखी के कारण टूटती जा रही हैं।

सरकार और EPFO दोनों ही EPS-95 पेंशनर्स की मांगों को गंभीरता से नहीं ले रहे। मान लेते हैं कि सरकार हमारी बातों पर विचार नहीं करना चाहती, लेकिन कम से कम सोशल मीडिया के ज़रिए हमें गुमराह करना तो बंद करे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, लेकिन सरकार खामोश

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से ईपीएस पेंशनर्स के पक्ष में निर्णय दिया, जिससे उम्मीद जगी कि अब शायद न्याय मिलेगा। लेकिन दुर्भाग्य से आज तक न प्रधानमंत्री, न वित्त मंत्री और न ही श्रम मंत्री ने इस पर कोई टिप्पणी की है। एक भी शब्द नहीं। एक भी ठोस कदम नहीं। ये चुप्पी अब पीड़ा बन चुकी है।

सोशल मीडिया बना छलावा का माध्यम

सरकारी तंत्र और कुछ मीडिया चैनल बार-बार पेंशनर्स को अलग-अलग खबरों से गुमराह कर रहे हैं। एक दिन खबर आती है कि 7500 रुपये मासिक पेंशन मिलेगी, दूसरे दिन कहा जाता है 8000 रुपये तय हुए हैं। और फिर एक नई खबर आती है कि 3000 रुपये की पेंशन लागू की जा रही है।

इन सब बातों ने हमें भ्रम और निराशा के दलदल में धकेल दिया है। यह सिलसिला अब थमना चाहिए।

न्यूनतम पेंशन की मांग को भुला दिया गया है

अब तो हालत ये है कि किसी को न्यूनतम पेंशन की मूल मांग भी याद नहीं रही। न सरकार इस पर बोल रही है और न ही अदालतें। सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ऐसा लग रहा है जैसे जानबूझकर मुद्दे को भटकाया जा रहा है।

हम अंतिम पड़ाव पर हैं, बस चैन से जीना चाहते हैं

देश की सरकार से विनम्र निवेदन है — कृपया हमारे साथ और अधिक खिलवाड़ न करें। हममें से कई लोग जीवन के अंतिम चरण में हैं। हमारे पास अब न समय है, न ताक़त कि रोज़ नई अफवाहों से टूटते रहें। हमें झूठी आशाएं देकर हमारी भावनाओं से खेलना बंद कीजिए। हम भी इस देश के नागरिक हैं, जिन्होंने अपने जीवन के सुनहरे साल इस राष्ट्र की सेवा में गुजारे हैं। हमें भी सम्मान और सच्चाई से भरी नीति की दरकार है।

अगर कोई ठोस योजना है तो सामने लाइए, वरना कृपया सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाना बंद कीजिए। कम से कम हमें हमारे अंतिम समय में मानसिक शांति तो मिल सके।

हम भीख नहीं मांग रहे — बस अपने हक़ की बात कर रहे हैं।

जय हिंद। जय भारत।

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