8th Pay Commission: लेवल 1 से 7 तक के कर्मचारियों के लिए 3.25 फिटमेंट, लेवल 7 के ऊपर 1.86 फिटमेंट फैक्टर?

8th Pay Commission: देश के सरकारी विभागों में काम कर रहे तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी आज भी अपने वेतन, मान-सम्मान और भविष्य को लेकर चिंतित हैं। जी हाँ दोस्तो, भारत में लेवल-1 से लेवल-7 तक के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की स्थिति आज भी चिंताजनक बनी हुई है। जब हर बार वेतन आयोग लागू होता है, तो उन्हें केवल सांत्वना मिलती है, वास्तविक लाभ नहीं। अब आठवाँ वेतन आयोग आनेवाला है ऐसे में लेवल 1 से लेवल 7 तक के कर्मचारी चिंतित है कि उनको इस वेतन आयोग में न्याय मिलेगा की नही?

7th Pay Commission ने क्या दिया? सिर्फ ₹4000

जब 7वां वेतन आयोग लागू हुआ, तो बड़े अधिकारियों की सैलरी ₹40,000–₹60,000 तक बढ़ गई। लेकिन लेवल-1, 2 और 3 के कर्मचारियों को सिर्फ ₹3000–₹4000 की बढ़ोतरी मिली।

क्या ये मज़ाक नहीं है? एक कर्मचारी जिसकी सैलरी ₹18,000 थी, वह बढ़कर ₹22,000 हुई।
लेकिन सचिवालय में बैठा अधिकारी ₹56,000 से ₹1.10 लाख पर पहुंच गया। जिनकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा थी, उन्हें ही सबसे कम दिया गया। यह सवाल न सिर्फ जायज़ है, बल्कि वास्तविकता भी है। लेवल 1 से 7 तक के कर्मचारियों को ऐसा महसूस होता है कि उनके साथ न्याय नही किया जाता।

Fitment Factor का भेदभाव – बदलाव ज़रूरी है

वर्तमान में Fitment Factor सभी के लिए 2.57 है – यानी अमीर और गरीब, बड़े और छोटे कर्मचारी के लिए एक जैसा। सवाल उठता है क्या तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की ज़रूरतें, एक IAS अफसर जैसी हैं?

बिलकुल नहीं!

सुझाव यह होना चाहिए:

कर्मचारी वर्गप्रस्तावित Fitment Factor
लेवल 1-43.25 या उससे अधिक
लेवल 5-72.75
लेवल 10+1.86 या सीमित

यह बदलाव अगर 8वें वेतन आयोग में लाया जाए, तो छोटे कर्मचारियों की जिंदगी सच में बदलेगी।

महंगाई आसमान पर – लेकिन वेतन वहीं का वहीं

  • LPG सिलेंडर ₹1000 से ऊपर
  • दूध ₹60–₹70 लीटर
  • स्कूल की फीस ₹2000–₹5000 महीना
  • दवा, बिजली, किराया… सब कुछ महंगा

पर कर्मचारियों की जेब वैसी की वैसी।

एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कहता है:

“हम ज़िंदा हैं, पर ज़िंदगी नहीं जी रहे।”

नीति निर्माता क्यों नहीं सुनते हमारी आवाज़?

जिस कमेटी में Fitment Factor तय होता है, उसमें ज़्यादातर IAS, सचिव, और बड़े अफसर होते हैं। उन्हें क्या मालूम कि ₹20,000 की सैलरी में परिवार कैसे पालते हैं? छोटे कर्मचारियों की आवाज़ उस मीटिंग रूम तक पहुँच ही नहीं पाती।

पेंशन भी मज़ाक बन गई – फुल पेंशन के लिए 15 साल इंतज़ार क्यों?

आज कोई कर्मचारी अगर ₹15,000 की पेंशन पर सेवानिवृत्त होता है, तो उसे फुल पेंशन मिलने में 15 साल लगते हैं। सरकार कह रही है कि अब 12 साल में मिल जाएगी — लेकिन ये भी पर्याप्त नहीं है। अब सवाल है कि जिनकी जिंदगी ही 60 की उम्र के बाद गिनती की रह जाती है, उन्हें फुल पेंशन के लिए इतना इंतजार क्यो करवाना।

हमारी माँगें क्या हैं?

Fitment Factor में सुधार

  • लेवल 1–4 के लिए 3.25 तक किया जाए
  • जिससे न्यूनतम सैलरी ₹26,000 से ऊपर पहुंचे

8वां वेतन आयोग – समय पर और निष्पक्ष बने

  • अलग से ग्रुप C और D स्टाफ के लिए स्लैब तय हों
  • बजट और महंगाई को ध्यान में रखकर

पेंशन और फुल पेंशन नियमों में बदलाव

  • कम्युटेशन की अवधि घटाकर 10 साल की जाए
  • पेंशन भी जीवन स्तर के अनुसार तय की जाए

निष्कर्ष: अब समय है न्याय का, सस्ती बातें नहीं

“देश की असली सेवा करने वाले असली सिपाही तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी हैं,
लेकिन नीति बनाने वाले उन्हें ‘खर्चा’ समझते हैं, ‘धरोहर’ नहीं।” अब समय है कि सरकार और आयोग छोटे कर्मचारियों के लिए नीति नहीं, न्याय करें।

आपका क्या विचार है? क्या Fitment Factor का भेदभाव खत्म होना चाहिए?
क्या छोटे कर्मचारी सिर्फ वोट के समय याद आते हैं?
अपनी राय कमेंट में ज़रूर दें और इस लेख को हर कर्मचारी तक पहुँचाएं।

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