पेंशन अदालत में भाग लेकर पेंशनभोगियों ने अपना हक और अधिकार पाया। OROP का एरियर हो या मेडिकल भत्ता हो किसी भी लाभ से पेंशनभोगियों को वंचित नही किया जाएगा, ये 13वी पेंशन अदालत में सिद्ध हो गया। लंबे संघर्ष के बाद पेंशनभोगियों को पेंशन अदालत से न्याय मिला। कुछ ऐसे ही केस आपके साथ साझा कर रहा हूं जिसमे पेंशनभोगियों को न्याय मिला।
उत्तर प्रदेश की श्रीमती रजमति को मिला OROP-II के तहत लंबित एरियर का हक़
वर्षों से अपने अधिकारों के लिए इंतज़ार कर रहीं उत्तर प्रदेश की निवासी श्रीमती रजमति को आखिरकार न्याय मिल ही गया। उन्हें OROP-II (One Rank One Pension – 2) के तहत 1 जुलाई 2019 से 30 जून 2024 तक की लंबित राशि के रूप में ₹4,80,780 का भुगतान किया गया है।
दस्तावेज़ पूरे, फिर भी देरी
श्रीमती रजमति ने समय पर अपने सभी जरूरी दस्तावेज़ संबंधित विभागों को भेज दिए थे। इसके बावजूद, उनकी फाइल पर अपेक्षित गति से काम नहीं हो सका। महीने दर महीने बीते, और उम्मीद की किरण धुंधली पड़ने लगी। लेकिन वे डटी रहीं और न्याय की आस नहीं छोड़ी।
पेंशन अदालत में हुआ समाधान
पेंशन अदालत (Pension Adalat) के सामने जब यह मामला पहुंचा, तो वहां मौजूद CGDA (Controller General of Defence Accounts) और PCDA (Principal Controller of Defence Accounts) के अधिकारियों ने आश्वस्त किया कि श्रीमती रजमति का प्रकरण अब पूरी तरह से हल कर लिया गया है।
उन्होंने जानकारी दी कि 16 मई 2025 को ₹4,80,780 की पूरी राशि सीधे श्रीमती रजमति के खाते में ट्रांसफर कर दी गई है।
एक मिसाल बन गई रजमति जी की कहानी
यह मामला सिर्फ एक पेंशन भुगतान की बात नहीं है, बल्कि उस भरोसे की कहानी है जिसे एक आम नागरिक ने भारत की प्रशासनिक प्रणाली पर दिखाया। श्रीमती रजमति की यह जीत न केवल उन्हें आर्थिक राहत देती है, बल्कि हजारों पेंशनभोगियों को भी प्रेरणा देती है कि यदि वे सच के साथ खड़े रहें, तो अंततः न्याय ज़रूर मिलता है।
16 वर्षों के लंबे इंतज़ार के बाद, श्रीमती साधना देवी को मिला मेडिकल भत्ते का हक
न्याय की राह में कई बार लंबा इंतज़ार करना पड़ता है, लेकिन अगर इरादा मजबूत हो, तो इंसाफ़ ज़रूर मिलता है। कुछ ऐसी ही कहानी है उत्तर प्रदेश की श्रीमती साधना देवी की, जिन्हें अपने मृतक पति स्व. कमलेश भारती (CT/GD, CRPF) की सेवा के बाद भी 16 वर्षों तक मिलने वाला ₹1000 प्रति माह का फिक्स मेडिकल भत्ता (FMA) नहीं मिल सका।
सालों से लगातार कर रही थीं प्रयास
श्रीमती साधना देवी ने अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए वर्ष 2022 से लगातार कई पत्र संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को भेजे। लेकिन उनके आवेदन पर न कोई कार्रवाई हुई और न ही उन्हें भत्ते की राशि या एरियर प्राप्त हुआ। इस बीच, चार बच्चों की जिम्मेदारी ने उनकी आर्थिक स्थिति को और अधिक जटिल बना दिया।
CRPF मुख्यालय की पहल से मिला समाधान
जब यह मामला पेंशन अदालत (Pension Adalat) में उठाया गया, तब CRPF मुख्यालय के अधिकारियों ने जानकारी दी कि अब उनका मामला सुलझा लिया गया है। उन्हें वर्ष 2009 से 2025 तक की FMA राशि ₹1,29,622/- का भुगतान कर दिया गया है, जो सीधे उनके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दी गई है।
संघर्ष से मिली राहत
श्रीमती साधना देवी का यह मामला सिर्फ एक एरियर के भुगतान का नहीं, बल्कि उस संघर्षशील महिला की कहानी है जो अपने हक के लिए 16 साल तक डटी रहीं। यह उदाहरण उन सभी परिवारों के लिए प्रेरणास्रोत है जो समान परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।
निष्कर्ष:
सरकारी तंत्र में सुधार की आवश्यकता को यह मामला एक बार फिर उजागर करता है। जो लाभ एक विधवा को नियमित रूप से मिलने चाहिए थे, वो डेढ़ दशक बाद मिले। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रकार की देरी वाली लापरवाह प्रणाली में अब सुधार होगा, ताकि भविष्य में किसी और को ऐसी परेशानी का सामना न करना पड़े।