केंद्र सरकार द्वारा 8वें वेतन आयोग की सिफारिशों से मौजूदा पेंशनभोगियों को वंचित करने का फैसला पेंशनर्स के लिए बड़ा झटका बनकर सामने आया है। इस फैसले ने करोड़ों पेंशनधारकों में गुस्से की लहर पैदा कर दी है। अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना करते हुए इसे क्रूर मजाक और निंदनीय कार्य बताया है।
सरकार के फैसले पर देशभर में विरोध की तैयारी
सुभाष लांबा ने स्पष्ट किया कि केंद्र व राज्य सरकारों के कर्मचारी संगठनों द्वारा इस अन्यायपूर्ण फैसले के खिलाफ एकजुट होकर विरोध किया जाएगा। यह मुद्दा आने वाले समय में हर मंच पर प्रमुखता से उठाया जाएगा। उन्होंने बताया कि 20 मई को प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल को सफल बनाने और इसके खिलाफ रणनीति तैयार करने के लिए चेन्नई में एक महत्वपूर्ण बैठक होगी, जिसमें पेंशनर्स और कर्मचारी संगठनों के शीर्ष नेता हिस्सा लेंगे।
बिना चर्चा किए किया गया नियमों में संशोधन
सुभाष लांबा ने बताया कि केंद्र सरकार ने 25 मार्च को संसद में वित्त विधेयक पेश करते समय, विपक्ष के विरोध के बावजूद, सीसीएस (पेंशन) नियमों में एकतरफा संशोधन किया है। इस संशोधन के तहत 31 दिसंबर 2025 तक पेंशन ले रहे पेंशनभोगियों को 8वें वेतन आयोग के लाभ से बाहर कर दिया गया है। यानी केवल 1 जनवरी 2026 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को ही इसका लाभ मिलेगा।
एक समान पेंशन की लंबे समय से है मांग
उन्होंने कहा कि पेंशनरों की “एक रैंक, एक पेंशन” की मांग काफी पुरानी है, और नागरिक पेंशनभोगियों के लिए भी यह समानता बेहद आवश्यक है। 5वें और 6ठे वेतन आयोगों ने भी इस सिद्धांत को मान्यता दी थी और सरकार ने इनकी सिफारिशों को लागू किया था।
इसी तरह, 7वें वेतन आयोग ने भी 1 जनवरी 2016 से पहले और बाद में सेवानिवृत्त हुए पेंशनभोगियों के बीच समानता की सिफारिश की थी, जिसे सरकार ने स्वीकार करके लागू भी किया।
सुप्रीम कोर्ट का भी स्पष्ट निर्णय
सुभाष लांबा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि संशोधित पेंशन देने के लिए पेंशनरों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटना अवैध और अनुचित है। कोर्ट ने सिविल अपील संख्या 10857/2016 में यह स्पष्ट किया था कि 1996 से पहले और बाद में सेवानिवृत्त हुए पेंशनर्स के बीच कोई अंतर नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान पेंशनभोगियों को 8वें वेतन आयोग के लाभों से वंचित करने का फैसला केवल नीतिगत भूल नहीं, बल्कि करोड़ों बुजुर्गों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन है। यह फैसला न सिर्फ संवेदनहीन है, बल्कि संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार के भी खिलाफ है।
अब देखना यह होगा कि कर्मचारी संगठनों और पेंशनर्स की एकजुटता इस फैसले को पलटने में कितनी प्रभावी सिद्ध होती है।
We will fight We will success
पेंशनर एकता जिन्दाबाद
हर जुर्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है
क्या यही मोदी सरकार का सबका साथ सबका विकास नारा यही है
नेताओं कि पेंशन क्यों बंद नहीं की जाती है
प्रधानमंत्री ने 2013 में चुनावी भाषण में कहा था कि फौजी भाईयों आपके लिये एक बहूत बड़ा तोहफा लेकर आऊंगा । क्या यही तोहफा हैं जिसका हम बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । फौजीयों का मनोबल बहूत टूट चुका हैं । आने वाले समय में भारतीय फौज बहूत पीछे चली जायेगी । प्रधानमंत्री बहूत झूठ बोलतें हैं ।
प्रधानमंत्री ने 2013 में चुनावी भाषण में कहा था कि फौजी भाईयों आपके लिये एक बहूत बड़ा तोहफा लेकर आऊंगा । क्या यही तोहफा हैं जिसका हम बेसब्री से इंतजार कर रहे थे । फौजीयों का मनोबल बहूत टूट चुका हैं । आने वाले समय में भारतीय फौज बहूत पीछे चली जायेगी । प्रधानमंत्री बहूत झूठ बोलतें हैं ।
Sarkar ka purjor virodh kiya jayega jai hind